विज्ञान क्लब मेरठ का वैज्ञानिक भ्रमणनई पीढी खो गई मिटटी की बनी कलाकृतिओं में सभी ने स्वंय बना कर देखे दिपावली के दीपक और कुल्हड़विज्ञान एवं प्रैद्योगिकी परीषद् उत्तर प्रदेश के तत्वाधान में जिला विज्ञान क्लब मेरठ द्वारा जनपद मेरठ के छात्र छात्राओ को पाटरी और टेराकोटा कलस्टर हापुड का ढाना देवली में वैज्ञानिक भ्रमण कराया ।जहाॅं बच्चो ने मिटटी की गुणवत्ता को जाना और उससे बनने वाले बर्तन,साज सज्जा व आभुषण आदि के बारे में विस्तार से जाना।मिटअी के तकनिकी विशेषज्ञ अमित मोहन ने बच्चो को बताया कि प्राचीन काल से ही मिटटी के बर्तनो की उपयोगिता हमेशा रही है चाहे वह गांव हो या शहर हो पहले के जमाने में हर जगह मिटटी के बर्तन ही काम में लेते थे। क्योंकि मिटटी के बर्तनो से कभी कोई बीमारी नहीं होती थी। और लोग हमेशा स्वस्थ रहते थे। लेकिन आजकल टेक्निकल जमाने में मिटटी के बर्तनो के फायदो को भूलकर धीरे.धीरे एल्युमिनियम के बर्तनों की ओर लोग बढ़ते जा रहे हैं। लोगों को अब कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है और अब लोग धीरे.धीरे जागरूक होते जा रहे हैं और मिट्टी के बर्तनों की उपयोगिता उनको समझ में आ रही है। क्योंकि सभी के बूढ़े बुजुर्ग लोग हमेशा से मिट्टी के बर्तनों का ही इस्तेमाल करते थे।उन्होने बताया कि सामान्यतया मिट्टी के बर्तन को टेराकोटा कहा जा सकता हैं। यह एक प्रकार की कला होती है जिसमे मिट्टी का प्रयोग किया जाता ह प्राचीन काल से सबसे प्रसिद्ध मिट्टी के बर्तन पेंटेड ग्रे वेयर मिट्टी के बर्तन हैं, जो आमतौर पर भूरे रंग के होते हैं और वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व) से संबंधित थे। देश के कुछ हिस्सों में लाल और काले मिट्टी के बर्तन ों के प्रमाण मिलते हैं जो 1500-300 ईसा पूर्व के हैं। ये पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से में पाए गए।इस अवसर पर संजय शर्मा,डा0 बनी सिंह चैहान,अरविन्द कुमार शर्मा, डा0मधुबाला और डा0 अनिल मोरल ने भी मिटअी की महत्ता को बताया ।चलते समय सभी को संस्थान की ओर से खुब सारे मिटटी के बने बर्तनो के उपहार भी दिये गये।विज्ञान समन्वयक दीपक शर्मा ने सभी का आभार जताया इस अवसर पर नमेश भाटी ,लक्ष्मी चन्दागिरि,पारूल सिंह और संध्या सैनी भी 103 बालको के साथ एक्सकोट टीचर के रूप में उपस्थित रहे।




